{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अनंतप्रसाद ‘रामभरोसे’|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatBaalKavita}}<poem>खटर-पटर मत कर दी चुहिया,खटर-पटर मत कर!तेरी खटर-पटर से मम्मीहो जाती है तंग,फिर भी बाज न आती हो तुमकरने से हुड़दंग।क्यों शैतानी दिखलाती हो,तुम मेरे ही घर!कुटुर-कुटुर खा जाती हो सबगेहूँ, चावल, दाल,और कुतर कर कपड़े सारेकरती हो बेहाल।बिल्ली मौसी का भी तुमकोजरा नहीं है डर!इतनी उछल-कूद भी अच्छीबात नहीं होती,तेरी जैसी चूहिया एक दिनपछताती, रोती।सोच-समझकर अब तू भी तोसही काम कुछ कर!</poem>