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|रचनाकार=वीरेंद्र मिश्र
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<poem>खेल-खेल में इसने मूरत गढ़ डाली,
रच डाली फुलवारी बना दिया माली,
छोटी-सी झेलम पर छोटी-सी पुलिया,
गुड़िया है या, यह है जादू की पुड़िया!

कोई कहे मोती इसे, कोई कहे हीरा,
कहीं बनी हीर और कहीं बनी मीरा,
कभी भाव कत्थक, तो कभी मनीपुरिया,
गुड़िया है या यह है जादू की पुड़िया!

करने को निकली है जादू या टोना,
गुड़िया को पता नहीं वह स्वयं खिलौना,
चंदा की चिड़िया को ताक रही बुढ़िया,
डूबा जो चाँद, कहा डूब गई लुटिया!
</poem>
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