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भालू हुआ वकील / वसु मालवीय

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<poem>बी.ए. ओर एल-एल.बी. पढ़कर
भालू हुआ वकील,
फर्राटे से लंबी-चौड़ी
देने लगा दलील।
जैसे टहल रहा जंगल में
वैसे चला कचहरी,
रस्ते में ही लगी टोकने
उसको ढीठ गिलहरी।
बोली,‘दादा, पहले काला-
कोट सिलाकर आना,
तभी कचहरी जाकर तुम
अपना कानून दिखाना!’
भालू हँसा ठठाकर, बोला-
‘तुमको क्या समझाऊँ,
जनम लिया ही कोट पहनकर
अब क्या कोट सिलाऊँ!’

-साभार: नंदन, दिसंबर 1996, 30
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