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गिरगिट जी / श्यामलाकांत वर्मा

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|रचनाकार=श्यामलाकांत वर्मा
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<poem>सिर पर टोपी, आँख पे ऐनक,
चले आ रहे गिरगिट जी।
नेता बनकर उछल रहे हैं,
बोल रहे हैं गिटपिट जी!
टर्रम-टूँ, टर्रम-टूँ करते,
मन के पूरे मैले हैं।
रंग बदलते, रूप बदलते,
हरे कभी मटमैले हैं।
आते बच्चे उन्हें देखने
ऊँची गर्दन करते हैं।
भीड़ देख करके बच्चों की,
मन ही मन वे डरते हैं।
</poem>
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