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05:26, 28 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बालकवि बैरागी
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|संग्रह=
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<poem>नदियाँ होतीं मीठी-मीठी
सागर होता खारा,
मैंने पूछ लिया सागर से
यह कैसा व्यवहार तुम्हारा?
सागर बोला, सिर मत खाओ
पहले खुद सागर बन जाओ!
</poem>