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05:49, 28 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=केवल गोस्वामी
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<poem>आसमान पर छाए बादल!
गहरे बादल, काले बादल,
दल बाँधे मतवाले बादल!
सूरज को दी मात अचानक,
दिन में कर दी रात अचानक,
करी अनोखी बात अचानक!
लोगों को हैरानी थी यह,
सच था, नहीं कहानी थी यह,
कुदरत की मनमानी थी यह!
हाथ को हाथ नजर न आता,
रस्ते चलता ठोकर खाता,
उठता, चलता, फिर गिर जाता!
पूछो इसे कहाँ से आया,
किसने भेजा, कौन है लाया,
आ इसने सबको भरमाया!
आँखें खोलो, पोंछो काजल,
कहीं नहीं है काले बादल,
ये तो है बस काजल का छल!
</poem>