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21:15, 29 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामकृष्ण खद्दर
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>छुट्टी हुई खेल की,
चढ़ी कढ़ाही तेल की।
सुर-सुर उठता बुलबुला,
छुन-छुन सिकता गुलगुला।
भुलभुला और पुलपुला,
मीठा-मीठा गुलगुला।
</poem>