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23:27, 29 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>सबके कहने पर मत जाओ,
मेरी बात सुनो तो माँ।
इतना होमवर्क होगा तो,
सब कैसे कर पाऊँगी।
मैडम इतना डाँटेंगी तो,
सचमुच मैं डर जाऊँगी।
पढ़ने से जी नहीं चुराती,
लेकिन ये समझो तो माँ।
फूल तोड़ते हैं जब सारे,
गुस्सा मुझको आता है।
कभी टोक देती हूँ तो,
फौरन झगड़ा हो जाता है।
तनिक पार्क का हाल देखने,
मेरे साथ चलो तो माँ।
झूठ-मूठ सब जड़ देते हैं,
तुम यकीन कर लेती हो?
अपने मन में इत्ता सारा,
गुस्सा क्यों भर लेती हो?
मुझको रोना आ जाएगा,
अब थोड़ा हँस दो तो माँ!
</poem>