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गुलमोहर का पेड़ / सुरेश विमल

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<poem>गुलमोहर का पेड़ लगाया
है मैंने जो आँगन में!

नन्हा-सा लाए थे पापा
इसको मेरे जन्म-दिवस पर,
पाला-पोसा मैंने इसको
पानी-खाद दिया था जमकर।

अब मुझसे भी बड़ा हो गया
देखो यह आनन-फानन में!

बड़े मजे से अब मैं इसकी
शाखाओं पर चढ़ सकता हूँ,
घंटों-घंटों इसकी शीतल
छाया में मैं पढ़ सकता हूँ।

चाहूँ तो बाँहों में इसकी
झूला झूलूँ मैं सावन में!
</poem>
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