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03:07, 30 सितम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुंदरलाल अरुणेश
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>मजे़दार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के,
देता लच्छूराम रुपए में चार बताशे पानी के।
इनका पानी याद करो, तो मुँह में भर आता पानी,
इन्हें गोलगप्पा भी कहते, सूरत जानी-पहचानी।
इसीलिए पाते हैं सबका प्यार, बताशे पानी के,
मजेदार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के।
थोड़ी मिली खटाई इसमें, खुशबूदार मसाला है,
टिक्की, खस्ता से भी बढ़कर इनका स्वाद निराला है।
पापड़ जैसे कड़क-कुरमुरे यार बताशे पानी के,
मजेदार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के।
देर नहीं लगती है, मुँह में रखते ही ये घुल जाते,
कभी-कभी मम्मी-पापा भी इन्हें देखकर ललचाते।
खाओ भी चटपटे जायकेदार बताशे पानी के,
मजेदार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के।
</poem>