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18:25, 2 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभाकर माचवे
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>बिल्ली आँखें मींचे बैठी,
होंठ जरा से भींचे बैठी,
दुबली-सी वह पीछे बैठी,
साँस मजे़ से खींचे बैठी,
पर चूहा सब जान गया है,
दुश्मन को पहचान गया है,
चाल नई है मान गया है,
कुत्ते से वह जाकर बोला-
फाटक पर सोया है भोला,
दरवाजा थोड़ा-सा खोला,
अब बिल्ली पर कुत्ता झपटे,
या कुत्ते से बिल्ली निपटे,
बिल्ली गुपचुप नीचे बैठी,
चूहे ने निज मूँछें ऐंठी।
</poem>