Changes

अगर-मगर / निरंकार देव सेवक

1,355 bytes added, 18:50, 2 अक्टूबर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निरंकार देव सेवक |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निरंकार देव सेवक
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>अगर मगर दो भाई थे,
लड़ते खूब लड़ाई थे।
अगर मगर से छोटा था,
मगर अगर से खोटा था।
अगर मगर कुछ कहता था,
मगर नहीं चुप रहता था।
बोल बीच में पड़ता था,
और अगर से लड़ता था।
अगर एक दिन झल्लाया,
गुस्से में भरकर आया।
और मगर पर टूट पड़ा,
हुई खूब गुत्थम-गुत्था।
छिड़ा महाभारत भारी,
गिरीं मेज-कुर्सी सारी।
माँ यह सुनकर घबराई,
बेलन ले बाहर आई!
दोनों के दो-दो जड़कर,
अलग दिए कर अगर-मगर।
खबरदार जो कभी लड़े,
बंद करो यह सब झगड़े।
एक ओर था अगर पड़ा,
मगर दूसरी ओर खड़ा।

-साभार: बालसखा, मई, 1946, 169
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits