557 bytes added,
13:35, 3 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीताराम गुप्त
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>बोला उड़ पीपल का पत्ता,
‘‘चाहूँ तो पहुँचूँ कलकत्ता।
कहने को तू सड़क बड़ी है,
पर बरसों से यहीं पड़ी है।’’
बोली सड़क-‘‘न शेखी मार,
मैं तो जाती कोस हजार।’’
</poem>