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पगलो मौसी / जयप्रकाश भारती

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<poem>पगलो मौसी सोती है,
सोते-सोते जगती है।

जगते-जगते सोती है,
पगलो मौसी रोती है।

रोते-रोते हँसती है,
हँसते-हँसते रोती है

पगलो मौसी मोटी है,
मोटी है जी, खोटी है।

कद में एकदम छोटी है
मानो फूली रोटी है।
</poem>
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