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17:33, 4 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चंद्रपाल सिंह यादव 'मयंक'
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<poem>छू, काली कलकत्ते वाली!
तेरा वचन न जाए खाली।
मैं हूँ जादूगर अलबेला,
असली भानमती का चेला।
सीधा बंगाले से आया,
जहाँ-जहाँ जादू दिखलाया।
सबसे नामवरी है पाई,
उँगली दाँतों-तले दबाई।
जिसने देखा खेल निराला,
जादूगर बंगाले वाला,
जमकर खूब बजाई ताली!
वह ही मंत्र-मुग्ध हो जाता,
पैसा नहीं गाँठ से जाता।
चाहूँ तिल का ताड़ बना दूँ,
रुपयों का अंबार लगा दूँ।
अगर कहो, तो आसमान पर,
तुमको धरती से पहुँचा दूँ।
ऐसे-ऐसे मंतर जानूँ,
दुख-संकट छू-मंतर कर दूँ,
बने कबूतर, बकरी काली।
</poem>