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|रचनाकार=ज्योतिप्रकाश सक्सेना
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<poem>गुड़िया ने हँसा एक बार,
फूल खिले कई-कई बार।

आँखों में तैर गए
सपने सिंदूरी,
साँसों में महक गई
जैसे कस्तूरी,
चंदन-सा गमक गया-
सारा घर-बार!
बालों में उलझ गए
बाबा के हाथ,
दादी ने चूम लिया
धीरे से माथ,
होंठों पर बरस गया-
पापा का प्यार।

बुआ की दुलारी ने
मोह लिया सबका मन,
चाचा की प्यारी इठलाए
ब्रज रानी बन,
मम्मी ने चुपके से
नज़र दी उतार!

-साभार: पराग, अप्रेल-1990, से साभार
</poem>
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