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|रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा
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सब समझाने की बातें हैं
कैसा दर्द निराशा कैसी, कैसा उठना और गिरना
मेरा क्या और तेरा क्या ये सब फ़िज़ूल की बातें हैं।
कहने समझाने का क्या है, यह सुन लो और समझ लो बस
जड़ सृष्टि का ताना बाना उलझाने की बातें हैं।
तेरा कहना मैं सुनता हूँ मेरा कहना तुम,
किस की कौन समझता है मन बहलाने की बातें हैं
जड़-चेतन का अद्भुत रिश्ता कहां समझ में आता है,
जीवन के रहते कब होती मर जाने की बातें हैं।
न मेरा करना होना है न तेरा करना होना है
जिसके हाथ लगे सोना सब उसके हक की बातें हैं।
एक सिरा मैंने थामा है एक सिरा तुम पकड़े हो
जिस के साथ है दिन का सूरज साथ उसी के रातें हैं।
सांसें जीवन का वहाव हैं यह जग है गीली मिट्टी,
सधी हुई मिट्टी सांसों में घुल जाने की बातें हैं।
पिंजरे का कैदी क्या जाने आसमान की गहराई,
आज़ादी और बे-परवाही सुनी सुनाई बातें हैं।
आज सभी कुछ सहज लग रहा कल न जाने कैसा हो,
इस बेबस जीवन की गुत्थी को सुलझाने की बातें हैं।
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