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15:24, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामानुज त्रिपाठी
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>बड़ी सलोनी एक चिरैया
भोली-भोली-सी गौरैया।
कभी किचन में
कभी मुँडेरे,
बैठ-बैठ कर
रोज सबेरे-
चीं-चीं-चीं-चीं बोल-बोल कर
मुझे जगाती, जागो भैया।
धीरे - से -
आँगन में आती,
दाने चुन-चुन
कर उड़ जाती-
नाच-थिरक खिड़की के ऊपर
करने लगती-‘ताता थैया!’
नींबू की
डाली-डाली पर,
गेहूँ की सुंदर
बाली पर-
गाती मीठे-मीठे स्वर में
फुदक-फुदककर छंद सवैया!
-साभार: नंदन, जुलाई, 1996, 37
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