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लोमड़ी / रोहिताश्व अस्थाना

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<poem>कितनी है चालाक लोमड़ी,
खूब जमाती धाक लोमड़ी।

सदा सफलता पाती है वह,
नहीं छानती खाक लोमड़ी!

भोली बनकर सबको ठगती,
करती खूब मजाक लोमड़ी!

पशुओं में बाँटा करती है,
जंगल भर की डाक लोमड़ी।

अपनी चतुराई के बल पर,
है जंगल की नाक लोमड़ी!
</poem>
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