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17:13, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश आज़ाद
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<poem>गप्पू, अप्पू, गोलू, भोलू
जनम दिवस सबका मनता है,
पर इन बच्चों की दादी का
जनम हुआ कब, नहीं पता है!
सूखा, बाढ़, दहार, जलजला
ऐसा ही उस साल घटा था,
या अंग्रेजों की आफत से
भारत में भूचाल मचा था
यही जन्म का ब्योरा भर है
सन्-संवत् का नहीं पता है!
जनम दिवस दादी का फिर भी
बच्चे आज मनाएँगे,
मोमबत्तियाँ जला-बुझाकर
उनसे केक कटाएँगे।
खुशियों से मौसम तर होगा
सही तिथि का यही पता है!
और कोई जो तोहफा देगा
उसको हम सब मिल बाँटेंगे,
बचा-बचाकर पाकेट खरचा
हुक्का नया उठा लाएँगे।
तब कितनी खुश होगी दादी
इसका भी तो किसे पता है!
</poem>