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20:20, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेंद्र 'मिलन'
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|संग्रह=
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<poem>सुबह-सुबह जब उगता सूरज,
लाल गेंद-सा लगता सूरज।
दोपहरी में थाली जैसा,
चमचम चमका करता सूरज।
लाल टमाटर-सा हो जाता,
शाम ढले जब ढलता सूरज।
</poem>