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20:22, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेंद्र 'मिलन'
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>गलियों में घूमा करते हैं,
दाढ़ी वाले बाबा जी।
इकतारे पर गाते रहते,
जाने क्या-क्या बाबा जी।
माँ जब उनको आटा देती,
शंख बजाते बाबा जी।
</poem>