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20:32, 5 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रामवचन सिंह 'आनंद'
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>पास हुए हम, हुर्रे-हुर्रे!
दूर हुए गम, हुर्रे-हुर्रे!
रोज नियम से, किया परिश्रम
और खपाया भेजा।
धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा
हर दिन ज्ञान सहेजा।
थके नहीं हम, हुर्रे-हुर्रे!
हम कछुआ ही सही चले हैं
लगातार, पर धीमें,
हम खरगोश नहीं कि दौड़ें
सोएँ, रस्ते ही में।
रुका नहीं क्रम, हुर्रे-हुर्रे!
बात नकल की कोई हमने
कभी न मन में लाई,
सिर्फ पढ़ाई के बल पर ही
अहा सफलता पाई,
जीत गया श्रम, हुर्रे-हुर्रे!
पास हुए हम, हुर्रे-हुर्रे!
</poem>