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00:05, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगदीशचंद्र शर्मा
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<poem>हिरन कहीं से लेकर आया
बोरे में भर मक्की,
उसकी घरवाली जंगल में
लगी पीसने चक्की।
निकला कोई शेर उधर से
करने सैर-सपाटा,
प्राण बचाकर हिरनी भागी
धरा रह गया आटा।
</poem>