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14:22, 6 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विजय किशोर मानव
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|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>ऊँची चिमनी छोटे घर,
हमने देखा एक शहर।
चौड़ी सड़कें भीड़ भरी-
गलियों में रोशनी नहीं,
मोटर जब बोली पों-पों,
भैया की साइकिल डरी।
बड़ा कठिन है यहाँ सफर,
हमने देखा एक शहर।
दुकानों पर भीड़ बड़ी,
मिट्टी की औरतें खड़ी,
एक इमारत ऊँची सी,
सबसे ऊपर लगी घड़ी।
सुबह जगाता रोज गज़र
हमने देखा एक शहर।
</poem>