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01:17, 7 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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<poem>मीता! क्या याद तुम्हें आता है नाम,
क्या अब भी पड़ता है मुझसे कोई काम
क्या अब भी बजते हैं गंध भरे गीत,
आँखों में उगती है रह रह कर प्रीत
कौंध कभी जाते क्या फूलों के दाम
'मीता'! क्या याद कभी आता है नाम
क्या कोई पूछ कभी जाता है ठौर
क्या अब भी चलते हैं कहवे के दौर
दबे पाँव आ जाता है कभी 'सलाम'
मीता'! क्या याद कभी आता है नाम
फूल कभी जाती है क्या अब भी बेंत
देह कभी भर जाती है मुंह में रेत
औचक भी मुख से क्या कढता- हे राम?
'मीता'! क्या याद कभी आता है नाम!
</poem>