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जब तलक चाँद पर कुछ जवानी रही पानियों का बदन गुदगुदाता रहाशाम ढली सन्नाटा बिखरा गाँव में साँवली रात हुईफूलों से फिर ख़ुश्बू निकली और नीला समन्दर तड़पता रहा, आह भरता रहा, कसमसाता रहाहवा के साथ हुई
एक तिनका चटानों तैर रहा था काले जल पर रौशनियों से फूटा हुआ कितना जाँबाज़ था कितना जीदार थाशह्र मिरारात बारिश लेकिन तुम आये तो जैसे चांदी की बूँदों से लड़ता रहा, मुस्कुराता रहा, क़द बढ़ाता रहाबरसात हुई
जैसे आपस में उलझी हुई टहनियाँ बूँद पड़ते ही ख़ुद में लिपटने लगेंअपनी बाहों होंठों से अपना बदन भींचकर वो बड़ी देर तक कसमसाता रहा एक ख़ूबानियों दिनभर की हँसी के सिवा गाँव का सारा माहौल ख़ामोश थाचुप्पी वरना टूट नहीं पातीघाटियों में अँधेरा महकता रहा , आप आते रहे, मैं बुलाता रहासाहसीशाम ढली थोड़ी से पी ली होंठ खुले बरसात हुई
मैं तुमसे... कह कर जो उसने अपना जुमला तोड़ा था
बरसों में जाकर वो शायद आपसे पूरी बात हुई
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