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|रचनाकार=दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी']]
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<poem>
सुब्ह को राशन लेने जाना शाम ढले घर आना बाबा
रोज़ाना ख़ाली थैले में ग़ुस्सा ही भर लाना बाबा

जाने क्यों अपना दुश्मन तो पर्दे के पीछे रहता है
ख़ुद अपने ही से टकराना टकराकर मर जाना बाबा

यादों के गहरे पानी से आती रहती हैं आवाज़ें
देर तलक माज़ी की बातें बिस्तर पर दोहराना बाबा

रोज़ मशीनों से यूँ दिन की उखड़ी पर्तें सीते रहना
शाम उतर आए काँधों पर तो घर लौट कर आना बाबा

ज़ोर हवा का देखने वाले क्या ज़ालिम हरकत करते हैं
मन के ग़ुब्बारे में उन का सूई रोज़ चुभाना बाबा

अख़बारों में ख़ूनी ख़बरें रोज़ाना मिलती हैं मुझको
सुब्ह हुई तो नींद पे मेरी लाशों का गिर जाना बाबा
</poem>