3,611 bytes added,
17:49, 15 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गगन गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>एक उम्र के बाद माएं
खुला छोड़ देती है लड़कियों को
उदास होने के लिए!
माएं सोचती हैं
इस तरह करने से
लड़कियां उदास नहीं रहेंगी,
कम-अज़-कम उन बातों के लिए तो नहीं
जिनके लिए रही थीं वे
या उनकी मां
या उनकी मां की मां
मसलन माएं ले जाती हैं उन्हें
अपनी छाया में छुपाकर
उनके मनचाहे आदमी के पास,
मसलन मां पूछ लेती है कभी-कभार
उन स्याह कोनों की बाबत
जिनसे डर लगता है
हर उम्र की लड़कियों को,
लेकिन अंदेशा हो अगर
कि कुरेदने-भर से बढ़ जाएगा बेटियों का वहम
छोड़ भी देती हैं वे उन्हें अकेला
अपने हाल पर
अक्सर उन्हें हिम्मत देतीं
कहती हैं माएं
बीत जाएंगे जैसे भी होंगे
स्याह काले दिन
हम हैं न तुम्हारे साथ
और बुदबुदाती हैं खुद से
कैसे बीतेंगे ये दिन हे ईश्वर
बुदबुदाती हैं माएं
और डरती हैं
सुन न लें कहीं लड़कियां
उदास न हो जाएं कहीं लड़कियां
माएं खुला छोड़ देती हैं उन्हें
एक उम्र के बाद
और लड़कियां
डरते-झिझकते आ खड़ी होती हैं
अपने फैसलों के रू-ब-रू
अपने फैसलों के रू-ब-रू लड़कियां
भरती हैं संशय से
डरती हैं सुख से
पूछती हैं अपने फैसलों से
तुम्हीं सुख हो?
और घबराकर उतर आती हैं
सुख की सीढ़ियां
बदहवास भागती हैं, लड़कियां
बदहवास ढूंढती हैं मां को
खुशी के अंधेरे में
मां कहीं नहीं है
बदहवास पकड़ना चाहती हैं वे मां को
जो नहीं रहेगी उनके साथ
सुख के किसी भी क्षण में
माएं क्या जानती थीं
जहां छोड़ा था उन्होंने
उदासी से बचने को
वहीं हो जाएंगी उदास लड़कियां
एकाएक
अचानक
बिल्कुल नए सिरे से
उदास होकर लड़कियां
लांघ जाती हैं वह उम्र
जहां खुला छोड़ देती थी माएं!
</poem>