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20:08, 15 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=इला प्रसाद
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{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>सम्बन्धों को उन्होंने ओढ़ा था
शॉल की तरह
ताकि वक़्त ज़रूरत उन्हें
उतार दें गर्मियों में
और उम्मीद की मुझसे
कि मैं उससे चिपकी रहूं
जाड़ों में स्वेटर की तरह
मासूम हैं लोग
नहीं समझते
कि न शॉल, न स्वेटर
रास आता है मुझे
मुझे तो ठिठुरती ठंड में
अपनी हड्डियों का
कड़ा होते जाना अच्छा लगता है!
</poem>