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<poem>एक स्त्री पहाड़ पर रो रही है
और दूसरी स्त्री
महल की तिमंजिली इमारत की खिड़की से बाहर
झांक कर मुस्कुरा रही है
ओ, कविगोष्ठी में स्त्रियों पर
कविता पढ़ रहे कवियों!
देखो कुछ हो रहा है
इन दो स्त्रियों के बीच छूटी हुई जगहों में,
इस कहीं कुछ हो रहे को दर्ज करो
कि वह अक्सर तुम्हारी पकड़ से छूट जाता है
एक स्त्री गा रही है
दूसरी रो रही है
और इन दोनों के बीच खड़ी एक तीसरी स्त्री
इन दोनों को बार-बार देखती कुछ सोच रही है
ओ, स्त्री विमर्श में शामिल लेखकों
क्या तुम बता सकते हो
यह तीसरी स्त्री क्या सोच रही है?
एक स्त्री पीठ पर बच्चा बांधे धान रोप रही है
दूसरी सरकार गिराने और बनाने में लगी है
ओ आदिवासी अस्मिता पर बात करने वाली
झंडाबरदार औरतों
इन पंक्तियों के बीच
गुम हो गयी उन औरतों का पता
जिनका नाम तुम्हारी बहस में शामिल नहीं है!</poem>
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