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जब एह्सास<ref>अनुभूति</ref> की झील में हमने दर्द का कंकर फेंका है
इक दिलकश<ref>मनोहारी, मनोहर ,चित्ताकर्षक</ref> से गीत का मंज़र<ref>दृश्य </ref> तह के ऊपर उभरा है
लोहे की दीवारों से महफ़ूज़<ref>सुरक्षित</ref> हैं इनके शीशमहल
तूने पगले! नाहक़ <ref>अकारण</ref> अपने हाथ में पत्थर पकड़ा है
जीना है तो फिर अपने एह्सास को घर में रखकर आ