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शादमानी में कभी दर्द से ढलते हुए रंग / ज़ाहिद अबरोल
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21:14, 24 अक्टूबर 2015
ले के आता है कोई आग उगलते हुए रंग
ज़िक्र-ए-“ज़ाहिद’’<ref>
जाहिद
ज़ाहिद
की
चर्चा
</ref> का बुरा हो कि दिखाये उस ने
हम को उस शोख़ के चेहरे के बदलते हुए रंग
{{KKMeaning}}
</poem>
द्विजेन्द्र 'द्विज'
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