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21:34, 24 अक्टूबर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
बात कहनी हो तो फिर ठोक बजा कर कहिये
जिससे कहनी हो उसी को ही सुना कर कहिये
जागते लोगों को बस एक इशारः काफ़ी
सोने वालों को जो कहना है हिला कर कहिये
यह हर इक दौर में ज़ख़्मी हुए माज़ी<ref>भूतकाल, अतीत</ref> हो कि हाल<ref>वर्तमान</ref>
इनको फ़र्दा<ref>भविष्य</ref> ही की कुछ आस बंधा कर कहिये
चाहते हो जिसे, हरगिज़ न ख़बर उसको हो
राज़ की बात है ख़ुद से भी छुपा कर कहिये
पीठ पीछे तो लगा देते हैं इल्ज़ाम सभी
जो भी कहना है उसे सामने आ कर कहिये
दिल का हर दर्द रग-ए-जां<ref>सब से बड़ी रक्तवाहिका जो हृदय में जाती है</ref> को ही छू कर आए
“ज़ाहिद” इस क़िस्से को कहना है तो गा कर कहिये
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