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परिवर्तन / मधु आचार्य 'आशावादी'

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<Poem>
जब तक
गांव में घर थे कच्चे
गोबर और गारे से सने
तब तक थे उनमें
मनुष्य पक्के
एकदम सच्चे
विश्वास योग्य

समय बदला
घर बने पक्के
वहां मार्बल और टाइल्स लगी
टीवी के लिए छतरियां टंगी
घरों के सामने कारें हुई खड़ी
अब घर तो हो गए पक्के
किंतु मनुष्य हो गए कच्चे....

घर कच्चे तो मनुष्य पक्के
घर पक्के तो मनुष्य कच्चे !

'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</Poem>
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