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11:17, 7 नवम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रचना शेखावत
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
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<poem>
ढक देवूं रोसनदान री जाळी
बारणै पर स्प्रिंग लगवा देवूं
कै कबूतरां-चिड़कल्यां रै
घर बणावण री रुत है!
रैवूं एकली राजी
घर साफ-सुथरो है
कठैई न तिणकलो
न कचरो है!
</poem>
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