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02:45, 15 नवम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिरुद्ध उमट
|संग्रह=
}}
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<poem>
बड़ी-बी दरवाजा खोलो
तुम्हारा पान
घुँघरू, खत लाने में हुई मुझसे देरी बहुत
'हम नहीं जानते तुम कौन हो
बड़ी-बी हाथ में खत लिये
मुंँह में पान चबाए
छमछम करती दहलीज पर आ
हैरान थी
'हमने अपने मरने का दिन तय कर रखा था
हमने समझा वह आ गया है
कहती बड़ी-बी मेरी आँखों में झांक रही थी
'ठीक है गडढा ठीक ही खुदा है
कहती वे उतरीं और एक मुट्ठी मिट्टी
हमें दे गयीं
</poem>