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<poem>वो एक पुल था
आंसुओं से निर्मित
उस से होकर
पहुंचा जा सकता था
उन प्रांतरों तक...

जहाँ तक पहुंचाना
किसी ठोस स्थूलता के
वश की बात नहीं... !

सूक्ष्म एहसासों तक
पहुँचते हुए
हम पीछे रह जाते हैं...
वहां पहुँचते हैं वही सार तत्व
जो रूह के
हिस्से आते हैं...

उस एकांत में
हर पहचान धुंधली है...
हमने मौन
आँखें मूँद ली है... !!</poem>
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