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10:41, 28 नवम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संजय पुरोहित
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>हे दुनिया आधी
कद बणसी थूं धणी
मिनख री
अरड़ावै करड़ावै
अर कैवे है खुद नै ईज
थारौ धणी
बोल बावळी !
लाज सरम रौ ठेकौ
कीं छूट्यो है थारै ईज नांव
परम्परा रै जंजीरां में
कद तांई रेवैली उळझ्योड़ी
कद मंढैला थूं साम्हीं
कद करैली थूं धमक
कद तांई रैवेली
दबयोड़ी पगथड़्यां हेठै
उण जीव रै
जण्यो थूं खुद
थारो ठाडो रगत
क्यूं नीं उबळै
क्यूं नीं उतार नाखै
गाभा गोलापै रा
क्यूं नीं मांडे
थारै खिमता सूं
नूवो चितराम
नाख उखाड़ खिण्डा दै
परम्परा री कूड़ी भसम
अर छाप थारी
अणमिट घड़त
जुग रै भाठै
थारै अर थारी
आधी दुनिया खातर
हे दुनिया आधी !
मून क्यूं है
बोल तो सरी !!
</poem>
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