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विदेह में देह / अर्चना कुमारी

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<poem>किश्तों में मिली जिन्दगी के-
रंग बराबर रहे हरदम
कि जाना स्वीकृत करने के बाद
आने का आह्लाद संयत हो गया
कुछ निशान शेष खुरचने के
स्पर्श के नाखूनों के
नकार दिया करीबियों को
बचाए रखा संदेह
जिज्ञासा नहीं बची
जानने जैसी सामान्य बातों में
इतना समझ आते ही
कि गलत है जो भी है
कच्ची उम्र ने गाँठ बाँध ली कसकर
कि बन्द कर ली आँखें
मूँद लिए कान
लब सी लिए...............
उम्र का बोध लिए अबोध रही लड़की
सुलझा रही रहस्य देह का
उसने विदेह होना चुना था कभी !!!</poem>
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