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05:03, 11 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>अ-आ ,इ-ई,उ-ऊ पढ़कर ,
हुए साक्षर चूहेराम |
कागज कलम किताबें लेकर,
किया शुरू लिखने का काम |
दिन भर कड़ा परिश्रम करते ,
पैसे खूब कमाते |
शाम ढ़ले ही किसी बैंक में ,
| जाकर जमा कराते |
उन्हें बैंक से एक पास बुक ,
और चैक बुक आई |
बड़े जतन से, बहुत सुरक्षित ,
बिल में ही रखवाई |
दिवस दूसरे सुबह उठे तो ,
देखा खेल निराला |
हाय! चेक बुक और पास बुक
को खुद ने खा डाला |
माथा रहे पीटते दिन भर ,
अपना चूहा भाई |
अपनी ही आदत क्यों खुद को ,
हो जाती दुखदाई |</poem>