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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>फिर
नये चंदन-वनों की खोज होगी
फिर चिताओं के लिए
चंदन कटेंगे

नये महलों के लिए
फिर जायेंगे पत्थर तराशे
रोज़ जलसे
कत्लगाहों में
बजेंगे ढोल-ताशे

फिर
जुलूसों की ज़रूरत रोज़ होगी
लोग फिर से
नये अभिनन्दन रटेंगे

मुँह-ढँके दिन भागकर
पिछली सुरंगों में छिपेंगे
बाँटकर घर-घर अँधेरे
धूप का सब नाम लेंगे

थके
कंधों पर सुबह भी बोझ होगी
बंद डिबियों में
नये सूरज बँटेंगे</poem>
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