1,035 bytes added,
11:48, 13 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>वही दहलीजें पुरानी
वही सीमाएँ
हम कहाँ जायें
घर-गिरस्ती
और जीने के झमेले
भीड़ इतनी
शहर भर में
सब अकेले
घूम-फिर कर
जंगलों की वही यात्राएँ
हम कहाँ जायें
दिन-ढले तक
बात करते
सिरफिरों से
मोमबत्ती जल गयी
दोनों सिरों से
रास्ते हैं
रास्तों की वही दुविधाएँ
हम कहाँ जायें
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader