1,288 bytes added,
13:21, 19 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>यथार्थ कहीं नहीं है
कुछ भी नहीं
हम सब एक सपने के भीतर के सपने में
जीवन के पूर्वाभ्यास के दौर में हैं
जैसा जो होता है
वैसा वो नहीं होता
जैसा हम चाहते हैं
फिर हमें
सपने आना शुरू हो जाते हैं
जिसमें बुनते हैं
यथार्थ को
थोड़ा-थोड़ा
हमारी दिक्कत यह है कि
हम केवल और केवल
आंख पर भरोसा करते हैं
सपनों पर नहीं
कई लोगों को
कभी पता नहीं चल पाता
एक ही समय में
एक सपना
सबका भी सपना हो रहा होता है
ऐसा सपना
जो हमें आखिरकार
सपनों से जगाकर
यथार्थ में ला पहुंचाएगा ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader