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कुछ नहीं भी / राग तेलंग

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|रचनाकार=राग तेलंग
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<poem>जो दिखा
वो देखा
जैसा जो दिखा, वैसा देखा

जो नहीं दिखता था
वह था
वह भी क्या देखा ?
जैसा जो ’’नहीं दिखता था’’, वैसा देखा ?

जो दिखता है, वो दिखता है
जो ’’नहीं दिखता है’’, अब क्या दिखता है ?

नहीं देखने पर
कुछ नहीं दिखता
यह ’कुछ नहीं’
देखने पर दिखता है
हॉं !! दिखता है।
</poem>
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