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वंशवृक्ष / राग तेलंग

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<poem>वृक्ष की
एक शाख पर बैठकर
अपने स्मृति वृक्ष की शाखें हिलाता हूं
मुझे बीजों के दरकने की आवाजें सुनाई पड़ती हैं और
कुछ सूखे जालीदार पत्ते मुझ तक उड़कर आते हैं

जिन दृश्यों को मैं सहेज पाता हूं
उनमें मेरे होने की प्रतीक्षा के क्षणों की आहटें गुंथी हुई हैं

एक दृश्य में मैं
जन्म ले रहा हूं
एक सांकेतिक रुदन माला के साथ
मैं अपने को जान जाता हूं

बस यहीं !
स्मृति वृक्ष हिलना बंद हो जाता है
मैं वृक्ष से उतरता हूं
उसके गले लगकर रोता हूं
वृक्ष को जैसे सब पता है
वह मेरे कंपनों को थामता है
मैं महज एक पत्ता हूं
जानता हूं ।  

</poem>
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