1,293 bytes added,
14:32, 19 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>बहुत सारे लोग
वह गीत तो गुनगुनाते हैं
मगर
मजरूह सुल्तानपुरी के नाम का खयाल
किसी को नहीं आता
बहुत से लोगों का
तकिया कलाम होता है
"नाम में क्या रक्खा है"
मगर
शेक्सपियर को
भला कौन याद रखता है ?
एक अकेला कोई
वॉन गॉग जैसा चित्र बनाता है
देखकर सब
सब भूल जाते हैं
एक दिन
सारा कुछ
सब लोग यूं अपना लेते हैं
जैसे वह उनका ही था हमेशा से
कलाकार
रचता ही है इस तरह
जज्ब हो ही जाता है
कभी ना कभी
इतिहासकार
इस घटना को
कहीं दर्ज नहीं करते
मगर यहां देखिए !
कवि करते हैं ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader