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मेरे घर की चींटियां / राग तेलंग

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<poem>खाना खाते वक्त ध्यान आया
कई दिनों से
घर में चींटियां नहीं दिखीं !

कहां गईं चींटियां ?
क्या खो गईं कहीं !
कहां खो गईं चींटियां ?
कहीं नाराज तो नहीं हो गईं ?
कहां चली गईं ?
वह भी बिना बताए !

भूख-प्यास की मारी चींटियां
आखिर गईं कहां चींटियां ?

हर घर अधूरा है
चींटियों के बगैर
हर घर की भूख-प्यास के सवाल से
सीधे जुड़ी हैं चींटियां ।
</poem>
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