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एक अजब-गजब प्रेम / राग तेलंग

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<poem>एक बार किसी ने मुझसे पूछा
तुम्हें पहली बार प्रेम कब, किससे और कैसे हुआ ?

यकीन मानिये यह सुनकर मैं बहुत ज्यादा सोच में पड़ गया

बड़ी मशक्कत के बाद मैंने महसूस किया
मुझे पहले-पहल प्रेम नींबू से हुआ था एक बागीचे में
यह उसकी गंध थी जो मुझे उस तक खींच लाई और
उसके पेड़ की उंचाई मेरे बराबर की ही थी
जिससे उसके तमाम नींबू मेरी हद में हुआ करते

पूरी उम्र मेरा और नींबू का साथ बना रहा सस्ता,सुंदर,सुगंधित,गुणकारी,अपशकुननाशी
नींबू, मेरा नींबू

एक दौर के बहुत बाद तो नींबू मुझसे छूटते-छूटते बचा
जी हां ! हाट में एक नींबू दस रु में बिकने लगा
सारी सब्जियां छोड़ उस दिन मैं एक अदद नींबू के साथ घर लौटा
प्रेम जो करता था मैं उससे !

जानता हूं यह अजीबोगरीब स्वीकारोक्ति है कि
मैं एक नींबू से प्रेम करता हूं इस प्रेम विहीन समय में
जब सारी चीजें कार्बाइड से गंधा रही हैं
तसल्ली होती है कि चलो मैं प्रेम तो करता हूं
कम से कम किसी से भी फिर भले ही वह एक नींबू ही सही

मेरी आंखें असामान्य हो जाती हैं मैं तेज कदम चलने लगता हूं उसकी तरफ
एक गंध मुझे खींचती चली जाती है
मेरी दृष्टि अर्जुन की आंख सी हो जाती है
जहां कहीं देखता हूं नींबू

ये नींबू का मेरे प्रति प्रेम है या मेरा नींबू के प्रति
ये कीमियागरी किसने बनाई है पता नहीं
शुक्र है उस पहले दिन का जब मैं नींबू से मिला और
उसका भी जिसने सवाल पूछकर अहसास दिलाया कि
मैं वाकई नींबू से बेइंतहा प्रेम करता हूं

हालांकि मेरा कंठ मधुर नहीं है
मगर अकेले में जब भी गुनगुनाता हूं
तो वे स्वर नींबू की महिमा के बारे में होते हैं ।

</poem>
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