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{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
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<poem>बाजारों में बिकती है रोटी
छोटे बड़े तवों पर सिकती है रोटी
खूब तो चलता है
ये कारोबार

तो कम €यों पड़ जाती है
बार-बार ।</poem>
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